गुरुवार, 29 जुलाई 2010

मिशन उत्तरप्रदेश-भाग 2

बीते लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने लोकसभा की 22 सीटें जीतकर सबकों चौंका दिया। शायद खुद कांग्रेस के लोगों के लिए यह जीत किसी अचम्भे से कम नही थी। मगर जीत तो जीत है चाहे उसके लिए कोई भी कारण गिनाए जाए। कांग्रेसियों के इसके पीछे राहुल फैक्टर काम करता दिखाई दिया। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उत्तरप्रदेश को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बनाया है। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमन्त्री देने वाले इस राज्य में कांग्रेस का ग्राफ 1989 के बाद लगातार गिरता चला गया। एक समय जो मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का प्रबल समर्थक था, बाबरी विध्वंस के बाद वह उससे दूर होता चला गया। मगर 2009 के लोकसभा चुनाव में वह वापस कांग्रेस की तरफ आता दिखाई दिया। यही कारण है कि कांग्रेस को न सिर्फ वोट फीसदी बल्कि सीट का भी फायदा मिला। उपर से मुलायम कल्याण मैत्री अध्याय का लाभांस सीधे-सीधे कांग्रेस के खाते में गया। बहरहाल कारण जो भी हो कांग्रेसी 2012 में यूपी के दुर्ग में झण्डा गाड़ने का सपना अकेले दम पर देखने लगे है। अब सवाल यह कि क्या यह ख्याली पुलाव है या वाकई इस बात पर दम है। दरअसल पिछले कुछ महिनों में यूपी में हुए 16 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के छोली में 2 सीटें ही गई। जबकि सबसे अहम मुददा यह रहा कि फिरोजाबाद सीट पर 1800 वोट लाने वाली कांग्रेस मात्र 6 महिने में 350000 वोट के साथ सपा के गड़ में सेंध लगा गई। इस चुनाव ने मुलायम को एक सबक भी दिया की जनता ज्यादा दिन तक परिवारवाद और मनमाने फैसले के बोझ तले नही दबी रह सकती। कांग्रेस पार्टी ने इस समय युद्ध स्तर पर सदस्यता अभियान चला रखा है। हाल के आंकड़ों से यह पता लगता है कि यह अभियान के तहत कांग्रेस से जुड़ने वाले लोगों की संख्या 20 लाख से बड़कर 60 लाख के आसपास पहुंच गई है। इस साल यूपी में पंचायत चुनाव तय है। 2011 में शहरी निकाय के चुनाव और 2012 में विधानसभा चुनाव है। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव। बहरहाल सबसे पहले राहुल गांधी यूपी में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार कर रहे है। दलितों के घर भोजन कर रहे है ताकि माया की दलित जमीन को दरका सके। इधर मायावती की सामाजिक संरचना को तोड़ना किसी भी पाट्री के लिए नामुमकिन दिख रहा है। मुलायम सिंह मुसलमानों से कल्याण को गले लगाने के लिए माफी मांग चुके है। देखना दिलचस्प यह होगा कि यह माफीनामा वापस मुस्लिमों को उनकी ओर खींच पायेगा या नही। इधर अजीत सिंह की पार्टी का कांग्रेसीकरण होना मुश्किल लग रहा है। इस काम में सबसे बडी चुनौति उनके खुद के बेटे है जो मथुरा लोकसभा सीट से सांसद हैं। बहरहाल देश को सबसे बड़े राज्य जहां से 404 विधायक चुने जाते है। 80 सांसदों दिल्ली चुन कर आते है। वह राजनीतिक लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है आप और हम समझ सकते है।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

विश्व जनसंख्या दिवस

जनसंख्या के लिहाज से भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बडा देश है। विश्व की 17 फीसदी आबादी भारत में रहती है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास 2.5 फीसदी जमीन है। 4 फीसदी जल संसाधन है। बीमारी में हमारी भागीदारी 20 फीसदी के आसपास है।  विश्व जनसंख्या दिवस की शुरूआत आज से 23 साल पहले 1987 से हुई। इस दिन के मनाने के पीछे लोगों तक जनसंख्या नियन्त्रण का सन्देश पहुचाना है।। भारत में कई राज्यों की आबादी कई देशों के बराबर है। मसलन देश के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की आबादी ब्राजील के बराबर है जबकि बिहार की जर्मनी के बराबर और थाइलैण्ड की दिल्ली के बराबर है। एक अनुमान के मुताबिक हम 15 से 20 साल में एक उत्तर प्रदेश भारत से जोड़ते है। रिपोटें यह भी कहती है कि अगर जनसंख्या विस्फोट इसी तेजी से चलता रहा तो 2050 तक 200 करोड़ की आबादी को भी हम पार कर जायेंगे। अगर समय रहते हमने कुछ गम्भीर कदम उठाये तो हम इस आबादी में 30 से 40 करोड तक की कमी ला सकते है।  उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मघ्यप्रदेश और असम जैसे राज्य  50 फीसदी तक आबादी बड़ाने के जिम्मेदार है। यह सारे राज्य भी मानव विकास सूचकांक में भी पीछे है। भारत में परिवार नियोजन को लेकर कई कार्य किये जा रहे है। मगर अशिक्षा ने सरकार की इन कोशिशों की हवा निकाल दी है। आज मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में भी तेजी से कमी आ रही है।  मगर एक बडी आबादी आज भी छोटा परिवार सुखी परिवार के क्या फायदे है इसको समझ नही पा रही है। यही कारण है कि भूखमरी बड़ रही है, जमीन पर लगातार बोझ बडा रहा है, खेती योग्य भूमि गैर कृषि कामों के उपयोग में लाई जा रही है। यानि जनसंख्या बडने के साथ साथ कई समस्याऐं बड़ रही है। आज 28 फीसदी आबादी शहरों में निवास कर रही है जबकि 2030 तक इसके 40 फीसदी होने का अनुमान है। और आगे चलकर 50 फीसदी आबादी शहरों में रहेगी। अहम सवाल यह है कि ‘ाहरों में क्या 50 फीसदी आबादी रहने लायक मूलभूत ढांचा तैयार है।  जनसंख्या बडने के पीछ जो बडे कारण है उनमें से मुख्य है।
परिवार नियोजन की जनाकारी का न होना
कण्डोम या गर्भनिरोधक दवाइयो के बारे में जानकारी का अभाव
बेटे की चाह
बेटी के प्रति सौतेला व्यवहार
बाल विवाह पर रोकथाम नही
शिक्षा का अभाव और बच्चा पैदा करने पर पत्नी की तव्ज्जों न देना
यह कुछ ऐसे कारण है जिसकी वजह से जनसंख्या नियन्त्रण पर कारगर काम नही हो पा रहा है

खाद्यान्न सुरक्षा की चुनौतियां और समाधान

सरकार का वादा है भूख से लडने का। गरीब को रोटी मुहैया कराने का। बकायदा इसके लिए कानून लाने का । कानून का नाम होगा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून। बीते एक साल से इस कानून पर मन्थन जारी है मन्त्रीयों के समूह के बाद और राष्ट्रीय सलाहाकार परिशद में इस कानून पर चर्चा हो रही है। उम्मीद की जा रही है देश में सबसे बडी पंचायत में यह विधेयक जल्द आयेगा। भूखे पेट को भोजन की गारंटी। यानि प्रत्येक गरीब परिवार हर महिने 3 रूपये किलो की दर से 25 किलो गेहूं या चावल पाने का अधिकार मिल जायेगा। कांग्रेस का लोकसभा चुनाव के दौरान किया गया है महत्वपूर्ण वादा है। गेहूं और चावल कितनी मात्रा में दिया जाए। कौन से लोग इसे पाने के अधिकारी होगें। क्या कुछ नए उत्पादों को इसमें शामिल किया जायेगा और आखिर में जरूरतमन्दों तक इसकी पहुंच कैसे बनाई जाए। सरकार इस कानून को लागू करने से पहले पीडीएस की खामियों केा भी दूर कर लेना चाहती है। ताकि गरबी के दरवाजे तक निश्चित मात्रा में राशन पहुंचाने का उसका सपना पूरा हो सके। जरा सोचिए जिन परिवारों की राते भूखे पेट गुजरती है, उनके लिए इस कानून के क्या मायने है। मगर कानून बनने के बाद देश से क्या भूखमरी मिट जायेगी। दरअसल गरीब कौन है। गरीब कितने है। गरीबी मापने का एक आदशZ पैमाना क्या होना चाहिए। कानून लागू करने से पहले इसका जवाब मिलना बाकी है। बड़ती आबादी के लिए रोटी का इन्तजाम करना सरकार का काम है। मगर बिना उत्पादन बड़ाये आखिर यह कैसे सम्भव हो पायेगा। हमारे देश में आजादी के 60 सालों के बाद भी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विकसित देशों के मुकाबले एक तिहाई है। मगर इसके लिए जरूरी है खेती को फायदेमन्द बनाया जाए। वैसे तो सरकार किसानों के लिए कई तरह की योजनाऐं चला रही है, कई तरह की सिब्सडी प्रदान कर रही है।  पिछले कुछ सालों में न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी भारी बढोत्तरी हुई है। मगर किसानों के मुताबिक इन योजनाओं का फायदा उन तक नही पहंच पा रहा है। लिहाजा हर हाल में अनाज का उत्पादन बड़ाना होगा। अच्छा उत्पादन कब बड़ेगा। सीधे सवाल का सीधा जवाब। जब खेती योग्य भूमि बडे़गी। ज्यादा रकबे में खेती होगी। किसान को बीज, खाद और पानी के साथ उत्पाद के बेहतर दाम मिलेंगे।  किसानों को सस्ता कर्ज आसान शतोंZ पर मुहैया कराना होगा। कैसी विडम्बना है कि 60 फीसदी खेती के लिए आज भी आज भी किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाये रहता है। अगर अनाज की किसी साल बंपर पैदावार हो भी जाए तो उसे सम्भाले कहां। एक और जहां किसी के पास खाने को अनाज उपलब्ध नही है, वही दूसरी और यह खुले आसमान के नीचे अनजा सड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में तकरीबन 1 लाख कारोड का अनाज रखरखाव के अभाव में सड़ जाता है। देश में भारतीय खाद्य निगम सबसे बडी भण्डारण संस्था है। एफसीआई की क्षमता 25.7 लाख मैट्रिक टन के आसपास है। जबकि खुले में उसके पास 28 लाख मैट्रिक टन की क्षमता है। हमारे यहां अनाज की आज भी मैनवल हैण्डलिंग की जाती है। जबकि विश्वभर में मैक्नाइज्ड हैण्डैलिंग हो रही है। आज सरकार के पास सबसे बडा मौका है कि गांवों में बनने वाले राजीव पंचायत भवन की जगह गोदाम बनाए जाये ताकि पंचायत स्तर में ही उसके रखरखाव और वितरण की व्यवस्था हो सके। साथ ही इस कदम से सरकार के खाद्यान्न सिब्सडी का बिल भी नीचे आ जायेगा। इससे बडी चुनौति जरूरत मन्दों तक कानून के मुताबिक राशन कैसे पहुंचेगा। फिलहाल यह काम सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से किया जाता था। भ्रष्टचार के दलदल में धंस चुकी इस प्रणाली को दुरूस्त कैेस किया जाए इसके लिए सरकर विचार कर रही है। वितरण के मामले में हमारा अनुभव खराब रहा है। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सरकारी बाबूओं और ठेकेदारों ने दुधारू गाय समझ लिया । नतीजा राशन ज्यादातर गरीबों तक पहंचने के बजाए बाजार में बिक जाता है। इसके सुधार के लिए सरकार को सस्ता गल्ला विक्रेता का लाइसेंस किसी व्यक्ति को देने के बजाय किसी स्वयं सहायत समूह के दिया जाए। साथ ही इसमें दिये जाने वाले कमीशन के लाभाकारी बनाया जाए। इससे जुडे आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को और कठोर बनाया जाए। इसमें कोई दो राय नही की सरकार एक ऐतिहासिक कदम उठाने जा रही है। मगर जब तक सरकार इन चारों स्तंभों को मजबूत नही करेगी तब तक यह कानून अपने उददेश्य के मुताबिक गरीबों तक नही पहुंच पायेगा। मतलब साफ है कि कानून से पहले इन चार पहलुओं पर गम्भीरता से विचार करना होगा। 
पहला गरीबों की सही पहचान
दूसरा उत्पादन बडाने के उपाय करना
तीसरा भण्डारण की उचित व्यवस्था और
चौथा वितरण प्रणाली को दुरूस्त बनाना।

राजनीतिक सुधार जरूरी

कर्नाटक में अवैध खनन से जुडे मामलों में रेडडी बंधुओं पर लगे अरोपों को बीजेपी ने दरकिनार जरूर कर दिया है। मगर राजनीति में धनबल के बड़ते दवाबों ने राजनीतिक सुधार की बहस जरूर गर्मा दी है। इसमें कोई दो राय नही कि ब्रहमा भी जमीन में आकर बीजेपी को कह दें की अवैध खनन में रेडडी बंधुओं न सिर्फ जुडे है बल्कि इतना बडा सामराज्य उन्होंने इसी के बल पर खडा कर रखा है।उनके बचाव में बकायदा मुख्यमन्त्री बीएस येदयुरप्पा सामने आ गयें है जिन्होनें कुछ महिने पहले रेडडी बन्धुओं पर अरोप लगाया था की वो सरकार की स्थिरता के लिए खतरा है। केवल कर्नाटक में ही क्यों उत्तराखण्ड में ऋशिकेश में जमीन आवंटन और पनबिजली परियोजनाओं में अनियमिताओं के आरोप लगे। यह आरोप किसी और पर नही खुद मुख्यमन्त्री रमेश पोखरयाल निशंक पर लगे। कुंभ के दौरान किए गए निर्माण कार्यो में ज्यादातर की गुणवत्ता खराब पाई गई। उपर से अब बिहार में नीतिश कुमार को भी कैग की एक रिपोर्ट ने कटघरे में खडा कर दिया है। इधर राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ कितनी तेजी से बडी है उत्तरप्रदेश इसका जीता जागत प्रमाण है। माया सरकार के एक मन्त्री को बम से उड़ाने की कोिशश क्या दिखाता है। जिस तरह मायावती ने संवाददाता सम्मेलन में इसके तार समाजवादी के एक विधायक से जुडे होने का आरोप लगाया क्या वह काफी नही है यह बताने के लिए की राजनीति आज अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहागाह बना गई है। ऐसा नही की यह मामला केवल एक राजनीतिक दल से जुडा है। आज कोई भी राजनीतिक दल इससे अछूता नही है। अपराधी राजनीतिक संरक्षण के तहत कानून से बेखौफ दनदनाते फिर रहे है। कानून के रखवाले सबकुछ जानते हुए भी अपने को अहसाय महसूस करते है। कुछ महिनों पहले गृहमन्त्री पी चिदंबरम ने राज्यों के पुलिस निरिक्षकों के सम्मेलन में कहा था कि पुलिस अधिकारियों को राज्यों ने फुटबाल बना दिया है। यानि जब जिसका मन आये किसी का भी तबादला कर दो। आज देश को जरूरत है इन सुधारों के प्रति गंभरता से आगे बडने की। वरना कानून तोडने वालों को कानून बनाने वाली पंचायत में आने से कोई नही रोक पायेगा।

शनिवार, 17 जुलाई 2010

मल्टी ब्राण्ड में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

औद्योगिक और सर्वधन विभाग द्धारा जारी चर्चा पत्र में मल्टी ब्राण्ड रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात कही गई है। रिटेल भारत में कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। 8 से 9 प्रतिशत की सालाना दर से यह क्षेत्र आगे बडा रहा है। इससे पहले एकल रिटेल ब्राण्ड में 2006 में 51 फीसदी एफडीआई को अनुमति दी थी। साथ ही होलसेल में 100 फीसदी विदेशी निवेश की।  2006 से मई 2010 तक 901 करोड का निवेश इस क्षेत्र में आया है। इसमें से ज्यातातर निवेश खेल से जुडे परिधानों में लग्जरी समान जेवरात और हैण्डबैग में आया है। मगर मल्टी ब्राण्ड के मसले में विरोध की तीव्रता देखते हुए लगता है कि यह मसला ठण्डे बस्ते में चला जायेगा। दरअसल चर्चा पत्र के आते ही विरोध के सुर कडे होते जा रहे है। वामदल तो खिलाफ थे ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी सरकार के खुलकर विरोध में आ गई है। उसका मानना है कि इस क्षेत्र में विदेशी निवेश का मतलब छोटे कारोबरियों और रेहडी पटरी वालों जिनकी की संख्या 4 करोड़ के आसपास है अपने रोजगार से महरूम हो जायेंगे। भारत में 95 फीसदी खुदरा कारोबारी असंगठित क्षेत्र से आते है। केवल 5 फीसदी संगठित क्षेत्र से आते है। आज जरूरत है मल्टी ब्राण्ड क्षेत्र में विदेशी निवेश की इजाज़त देने से पहले निम्नलिखित सवालों का जवाब ढंढा जाऐ।
1-छोटे कारोबारियों और रेहडी पटटी वालों पर इसका क्या प्रभाव होगा।
2-क्या वोलमार्ट जैसी दिग्गज कंपनियां जो भारत के बाजार में प्रवेश के लिए ललायित है,उतने लोगों को रोजगार दे पायेंगी जितने लोग असंगठित खुदरा कारोबार से जुडे है। 
3-इस बात में कितना दम है कि किसान और ग्राहकों का इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा।
4-आज थोक और फुटकर दामों में जो बडा अन्तर है क्या उसे पाटने में मदद मिलेगी।
 5-आखिर में सबसे अहम भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पडेगा।
सच्चाई यह है कि सिंगल ब्राण्ड में इन नियमों का पालन नही हो रहा है। भारत में रिटेल में जीडीपी की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आसपास है जबकि चीन में यह 8फीसदी ब्राजील में 6 फीसदी और अमेरिका में 10 फीसदी है। भारत में तकरीब 1.5 करोड़ रिटेल स्टोर है जिनमें प्रमुख है पैन्टलून, सौपर्स स्टॉप , स्पैंसर, हाइपर सीटी, लाइफस्टाइल, सुभिक्षा और रिलायंस।  रिटेल क्षेत्र 70 फीसदी खाद्यान्न से जुडा हुआ है। जिसका मतलब इसमें होने वाले निवेश का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पडेगा। जो लोग रिटेल में विदेशी निवेश के पक्ष में है उनका कहना है कि इस क्षेत्र में एफडीआई आने से तकनीक और ढांचागत विकास तेजी से बडेगा। देश में सालाना आधर पर जो 50 हजार करोड़ का राशन और सब्जियां बेकार चली जाती है, उसमें सुधार आयेगा। यह सब इसलिये क्योंकि हमारे यहां प्रोसेसिंग महज 2 फीसदी होती है जबकि आस्टेलिया और फीलिपीन्स जैसे देशों में यह 90 फीसदी है। इस बात को ध्यान में रखकर सरकार इस क्षेत्र में सुधार के लिए विदेशी निवेश की बात कर रही है। अगर  इस क्षेत्र में एफडीआई को हरी झण्डी मिलती है तो इस बात का प्रावधान करना जरूरी होगा कि कोई प्राधिकरण का गठन किया जाए जो इस क्षेत्र पर अपनी नज़र रख सके। साथी ही वाणिज्य मन्त्रालय से जुडी स्थाई समिति ने यह सिफारिश की है कि सरकार असंगठित क्षेत्र के कारोगारियों को संगठित कैसे बना सकती है उस पर विचार करें।

बुधवार, 7 जुलाई 2010

गरीब का अर्थशास्त्र

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने गरीबी कम करने की दिशा में अच्छा काम किया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2014 तक गरीबी 24 फीसदी आ जायेगी। इसी गरीबी पर हमारे वित्तमन्त्री प्रणव मुखर्जी ने फरवरी 2009 में कहा था कि 2014 तक हम गरीबी को वर्तमान 27.5 करोड़ से घटाकर आधा कर देंगे। बहरहाल गरीबी के आंकडों को लेकर पसोपेश जारी है। कहा यह भी जा रहा है कि सरकार तेन्दुलकर समिति के 37.2 फीसदी पर मान गई है। यानि वर्तमान के एनएसएस के 27.5 करोड़ से 10 फीसदी ज्यादा है। इसका मापदण्ड यह है कि गांव में 2400 कैलोरी और शहर में 2100 कैलोरी भोजन पाने लायक खर्च जो परिवार ना कर पाये वह गरीबी रेखा के नीचे है। एक नज़र इन आंकडों पर।
गरीबी रेखा
2004- 05
शहरी      25.7 फीसदी
ग्रामीण   28.03 फीसदी
गरीबी रेखा के नए आंकड़े
शहरी 25.7 फीसदी
ग्रामीण 41.8 फीसदी
देश में गरीबी उन्मूलन के लेकर कई कार्यक्रम बनाये गए। जनसंख्या बड़ने के साथ साथ यह मर्ज बड़ता गया। उपर से भ्रष्टचार ने बची खुची कसर पूरी कर दी। ज्यादातर लोग राजीव गांधी के कालाहाण्डी में दिये गए बयान को अपनी चर्चा में लाना गौरव महसूस करते है।मगर आज भी यह सच न सिर्फ ज़िन्दा है बल्कि पहले से हालात और खराब हो गए है।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम 
1970 एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम
1986 इिन्दरा आवास योजना
1989 जवाहर रोजगार योजना
1997 लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली
1999 जवाहर ग्राम समृद्धि योजना
1999 स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
2001 सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना
2006 महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून
2006 राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
यह कार्यक्रम तो बस उदाहरण है। इसके अलावा भी कई कार्यक्रम शुरू किये गए मगर अंजाम में किसी के ज्यादा फर्क नही है। ऐसे दौर में जब खाद्य सुरक्षा कानून पर देश भर में बहस चल रही है तो सरकार को हरसम्भव प्रयास करना चाहिए कि गरीबो को इस अधिकार के मुताबिक उनका हक मिलना चाहिए।

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मिशन बिहार 2010

बिहार विधानसभा की चुनाव की घड़ी ज्यों ज्यों नजदीक आ रही है त्यों त्यों राजनीतिक गलियारों में शोरगुल बड़ता जा रहा है। हाल के दिनों में बीजेपी जेडीयू गठबंधन का झगडा सडक पर आ गया। बीजेपी ने स्वाभिमान रैली कर अपना दमखम दिखाने की कोशिश की तो नीतिश ने बीजेपी को आइना दिखाने में जरा भी देर नही की। बिहार के हिन्दी और उर्दू अखबारों में नीतिश और मोदी के हाथ मिलाते विज्ञापनों ने नीतिश कुमार को झटक कर रख दिया। विज्ञापन में छपी तस्वीर नीतिश के राजनीतिक समीकरणों पर एक तरह का कुठाराघात था। सवाल यह उठता है कि बिना नरेन्द्र मोदी के संज्ञान में लाए उनकी तारीफों के पुल बांधने वाले विज्ञापन कैसे अखबारों मे छप सकते है। खबरें तो यह भी छन छन कर आ रही है कि गुजरात में बीजेपी के सांसद के तत्वाधान में यह पूरा विज्ञापन तैयार हुआ। बकायदा इसके लिए 28 लाख रूपये खर्च किये गए। इसके लिए सीधे तौर पर बीजेपी जिम्मेदार है। बिहार के राजनीतिक हालात किसे से छिपे नही है। मुस्लिम वोट जो बिहार में 17 फीसदी के आसपास हैं, बिहार की राजनीति में क्या मायने रखते है यह किसी से छिपा नही है। एम वाई समीकरण के ही चलते लालू ने बिहार में 15 साल तक राज किया। नीतिश कुमार ने भी अपने साढे चार साल में अिक्लयतों के लुभाने का हर सम्भव प्रयास कर रहें है। ऐसे में अगर कोई उनके करे कराये में पानी फेरता है तो 14 साल पुराने गठबंधन से हाथ झटकने में जरा भी देर नही करेंगे। बहरहाल नीतिश कुमार और सुशील मोदी दोनों ही विश्वास यात्रा कर रहे है। इधर कांग्रेस अपने आप को संगठित करने की दिश में काम कर रही है। पार्टी की भी नज़र मुस्लिम समुदाय पर है। इसी को ध्यान में रखकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान मस्लिम व्यक्ति को सौंपी है। कांग्रेस उत्तरप्रदेश के बाद इस राज्य में मुस्लिमों को अपने पाले में लाना चाहती है। मगर बिहार में क्रांग्रेस की स्थिति किसी से छिपी नही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे 2 सीट पर सन्तोश करना पड़ा। वही जेडीयू का जनाधार पिछले 5 वशोZ में बड़ा है। नतीश ने बिहार में लोगों के दिलों में विकास की एक झलक दिखाई है जो पिछले पंन्द्रह सालों में कही गुम सी थी। बहरहाल बीजेपी और जेडीयू के बीच सीट बंटवारे पर भी सहमति लगभग बन चुकी है। कुल मिलाकर बिहार में हर राजीनीतक दल का रणनीति जाति के आसपास घूमती है।